रविवार, 6 फ़रवरी 2011

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रात को बिस्तर में बडबडआते हुए
जो भी निकला था खुदा खैर करे
थोडा सच था तुम्हारे बारे में
थोडा सच था हमारे बारे में

नींद कमबख्त जगाती है रात भर हमको
झपकियाँ थपेड़ों  सी आती हैं चली जाती हैं
शिकायत करते हैं के गुम जाये रजाई में कहीं
चादर के साथ धुल जाये किसी सन्डे को

छुप के सो जाऊंगा धूप तले
नींद के साथ मेरा खेल बरसों से जारी है 

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