कितने कसबे छूटे हमसे
एक तेरा ही क़स्बा साथ रहा
कितने चेहरे छूटे हमसे
एक तेरा ही चेहरा साथ रहा
कई सूखे ज़र्द दरख्तों पर
तिनकों के मोहल्ले बनते रहे
सारे सपने छूटे हमसे
एक तेरा ही सपना साथ रहा
उम्र का क्या है, क्यों रोकें
जो ढलती हो सो ढल जाये
जो कुछ भी था, वो छूट गया
जो कुछ भी था वो साथ रहा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें