सब आवाजें
जैसे बांध तोड़े
बह चली थी
आज तेरे घाट पर आ कर रुकी हैं
ओ मांझी
कब पार चलें वैतरणी के
सब कूल किनारे
छोटे होते जाते
किनारे दूर खड़े
सारे सहारे
कुछ गा मांझी
बहती नाव
बहती सुर की धार
अंतिम कहाँ
बस रचा था एक कल्प
एक पड़ाव के लिए
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जैसे बांध तोड़े
बह चली थी
आज तेरे घाट पर आ कर रुकी हैं
ओ मांझी
कब पार चलें वैतरणी के
सब कूल किनारे
छोटे होते जाते
किनारे दूर खड़े
सारे सहारे
कुछ गा मांझी
बहती नाव
बहती सुर की धार
अंतिम कहाँ
बस रचा था एक कल्प
एक पड़ाव के लिए
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