मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

शायद उठ कर कहीं गया होगा 
महफिलों में रास्ता नहीं होगा 
आखिरी जंगलों के पार कहीं 
कोई इंसान सा इंसान होगा 

कोई कहता है 
रुक जाओ एक पहर के लिए 
एक बेहतर सेहर का 
उसे भी कोई गुमान होगा 

चादरों में समेट कर रातें 
सोकर उठे सुबह तो मंज़र नया मिला
कोई फिर से चाबी घुमा कर
दुनिया बदल गया होगा 

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