शायद उठ कर कहीं गया होगा
महफिलों में रास्ता नहीं होगा
आखिरी जंगलों के पार कहीं
कोई इंसान सा इंसान होगा
कोई कहता है
रुक जाओ एक पहर के लिए
एक बेहतर सेहर का
उसे भी कोई गुमान होगा
चादरों में समेट कर रातें
सोकर उठे सुबह तो मंज़र नया मिला
कोई फिर से चाबी घुमा कर
दुनिया बदल गया होगा
कोई फिर से चाबी घुमा कर
दुनिया बदल गया होगा
Bahut pyaari kavita hai...:)
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