शनिवार, 31 दिसंबर 2011

ekant

एकांत क्या है
वो द्वार क्या है
जिसके उस पार
सुनाई नहीं देता शोर
अपने अंतस का भी नहीं

क्यों भागता है मन
शोर से दूर
अपने अन्दर के कोलाहल को
एक जिन्न की तरह बोतल में कैद करने की
कोशिश करता है

और किधर पहुँचता है, कहाँ फ़ेंक आता है बोतल
किसी ने देखा है

एकांत कुछ नहीं होता

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

kavi ko kahiye

कवि को कहिये
चुप रहे
कविता कहने और सुनने की नौटंकी
कहीं और करे
ये मनोरंजन के शगल क्रांति के धोखे से
उन किसानों के घर घुस आये हैं
पिछले पूस जला दिए गए झोपड़े जिनके
जिन्हें थप्पड़ों लातों से मिलती रही पगार
जिनकी जात जिनका नाम
एक गाली है

कवि को कहिये
इस धोखे में ना रहे
कि वो कुछ बदल रहा है
अपने भांडों कि जमात के साथ
वो भी
आत्म प्रवंचना की सड़क पर चल रहा है

कवि को कहिये
बस सुने
पत्थर में सनी पुश्तों का शोर
उनके फेफड़ों की धौंकनी से बहती
गर्म हवा की सीटी
उनके पेटों में गलते कुदाल और हल
जहाँ से अब
बंदूकें बनेंगी

-

बेखबर
हुआ नहीं जाता
और
खबरों के अन्दर उबलते तेज़ाब का शोर
सुना नहीं जाता

हाँ सर झुकाया जाता है
हाँ जी कर दिखाया जाता है 

kuch khali se kamre

खुलता है दरवाज़ा 
सांस छोड़ते हैं जैसे 
कुछ खाली कमरे 

मैं रोज़ रात आता हूँ
सुबह निकल जाता हूँ 
अपना कबाड़ इनके फेफड़ों में छोड़ कर 

इनसे बात भी नहीं करता 
एक मजबूर शादी की तरह 
हम दोनों बस रात को नीद का बहाना कर 
एक दूसरे को बर्दाश्त करते हैं 

कोशिश करता हूँ इनको भरू
चीज़ें खरीद कर ठूस देता हूँ उनके अन्दर 
मगर कुछ दिन बाद वो भी इस खालीपन का हिस्सा बन जाती हैं 

कुछ दिन पहले एक चूहा भी आया था इनमे रहने 
कचरे के ढेर में निकली उसकी मैयत 
अब फिर अकेले हैं 
ये कमरे और मैं 


गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

for my wife

मुस्कुराया करो ज्यादा तुम  

जो कभी दिन ढला करे जल्दी 
सर्द रातें चलती हों गलियारों में लालटेन टाँगे  
अधजली लकड़ियों का लोबानी धुंआ 
तैरता रहता हो मोहल्ले के छतों पर 

घनचक्कर मच्छरों के झुण्ड के झुण्ड
भटकते रहते हैं एक खिड़की से दूसरी खिड़की 
मिलते रहते हैं हमदर्द पड़ोसियों की तरह 

जनानखाने में रौशन तेरी हंसी के दिए 
तेरी बातें रेशम की तहों की ररह
एक के बाद एक खुलती जाती हैं 

तुझसे मुकम्मिल है मेरी-तेरी  शाम-ओ सेहर 
हमारी छोटी सी नायब सी दुनिया 
हमारे किताबों के cd यों के ढेर 
सालगिरह मुबारक हो हमारी खुशियों की 
मुस्कुराया करो ज्यादा तुम 


 

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

तुम्हारी दुनिया के हवाले से
फिर एक इलज़ाम आया है

याद ऐसे भी किया करते हैं परायों को