गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

for my wife

मुस्कुराया करो ज्यादा तुम  

जो कभी दिन ढला करे जल्दी 
सर्द रातें चलती हों गलियारों में लालटेन टाँगे  
अधजली लकड़ियों का लोबानी धुंआ 
तैरता रहता हो मोहल्ले के छतों पर 

घनचक्कर मच्छरों के झुण्ड के झुण्ड
भटकते रहते हैं एक खिड़की से दूसरी खिड़की 
मिलते रहते हैं हमदर्द पड़ोसियों की तरह 

जनानखाने में रौशन तेरी हंसी के दिए 
तेरी बातें रेशम की तहों की ररह
एक के बाद एक खुलती जाती हैं 

तुझसे मुकम्मिल है मेरी-तेरी  शाम-ओ सेहर 
हमारी छोटी सी नायब सी दुनिया 
हमारे किताबों के cd यों के ढेर 
सालगिरह मुबारक हो हमारी खुशियों की 
मुस्कुराया करो ज्यादा तुम 


 

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