बुधवार, 28 अप्रैल 2010

untitled

इंतज़ार दबे पांव लौट आया है
बेसबर रात उठ उठ के लौट आती है

अब के जाओ तो बताकर जाना
फ़िक्र से नींद नहीं आती है

बरसते हैं रात भर ज़मीं पे टूटते सैयारे
राख सपनों के पेट में छुपकर

दहकते रहते हैं कुछ बददिमाग अंगारे

थपकियाँ दे के सुलाकर जाना
अब के जाओ तो बताकर जाना

------------आनंद झा २०१०------------

1 टिप्पणी: