इंतज़ार दबे पांव लौट आया है
बेसबर रात उठ उठ के लौट आती है
अब के जाओ तो बताकर जाना
फ़िक्र से नींद नहीं आती है
बरसते हैं रात भर ज़मीं पे टूटते सैयारे
राख सपनों के पेट में छुपकर
दहकते रहते हैं कुछ बददिमाग अंगारे
थपकियाँ दे के सुलाकर जाना
अब के जाओ तो बताकर जाना
------------आनंद झा २०१०------------
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएं