हर आवाज़ की नोक में हमने
ज़हर लगा कर रक्खा है
जाने किस कागज़ में तुमने
सुबह दबा कर रक्खा है
सरकार बने फिरते हो तुम
हमारे घर के जंगल के
उखाड़ के हमको मिटटी से
concrete में रोपते रहते हो
तुम होते कौन हो #########
किस्मत जो हमारी लिखते हो
दिल्ली में अपनी कुर्सी पे
जाने कितने हाथों बिकते हो
देखेगे तुम्हारा ताब ओ ज़हर
हम देखेंगे दुनिया देखेगी
रुक जाओ कुछ ही बरसों में
गद्दी से उठाकर फेंकेगी
आज तो आपने कमाल ही कर दिया ,,
जवाब देंहटाएं