शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

ghar se bhage hue bacche-1 (alok dhanwa ke naam)

टकरा कर लौट आती हैं उनकी रूहें
एक बेचैन समंदर जैसे पल दो पल
फेंकता रहता है सैलाब किनारे की तरफ

अपनी आवाज़ शहर में
मुहाफ़िज़ की तरह सुनकर
अपनी आखों में भर के concrete के मोतियाबिंद
बड़े होने की तैयारी में
जुट जाते हैं बच्चे

घर से भागे हुए बच्चे
डर कर उठ जाते हैं
कच्ची नींद में जागे हुए बच्चे

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