मंगलवार, 26 सितंबर 2017

muhabbat-6

कितनी एक तरफ़ा मुहब्बतों की
कब्रगाह हूँ मैं
और ऐसी कितनी कब्रगाहों में हूँ मैं दफ़न

काश एक शाल में लिपटे होते
अपनी आरज़ूओं के हाथ थामे
एक सब्ज़ दरख़्त के नीचे
ओढ़ कर पश्मीने का कफ़न

इश्क़ में तड़पा करो तुम सारी जनम
मेरे अश्कों की प्यास लेकर अपने होठों पर
मेरे आवारा मुहब्बतों में गिरफ्तार रकीब
मेरी दुआ लो
जाओ ऐश करो 

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