मंगलवार, 26 सितंबर 2017

khat

ये वो जगह है
जहाँ से
चुप्पी और चुप्पी
के बीच
बहती हुई एक नदी है

आवाज़ के बाहर
अलफ़ाज़ के बाहर
सांस और छुअन की यातनाएं हैं
देखना और देखा जाना है
चलना है बगल -बगल
खाना है
खुशबू है
और अनगिनत
भाषाएं रची बसी हैं

कर दो दस्तखत
इस चुप्पी की वादी में
निगाहों से
चुप चाप
सरका दो एक लिफाफा मेरी तरफ

तुम वो लिख दो जो तुम लिखना चाहो
मैं वो पढ़ लू जो मैं पढ़ना चाहूँ



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