शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

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हर नयी रात का
कायदा है
कुछ भूल जाना

फिर मिलना अगली सुबह से
याददाश्त के उसी चौखट पर
जहाँ न जाने की
हज़ार मिन्नतें की थी

ख़राब होता है वक़्त के साथ
आदमी पुर्ज़ा है
जंग खाता है
याददाश्त की चट्टानों से रोज़ घिसकर
टूट जाता है

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