और उसके ग़म हैं
किस्सों जैसे
ग़म के मज़े आ जाते हैं
चीखें हैं लोरी जैसी
हम सुन कर के सो जाते हैं
उसका बदन रोटी का टुकड़ा
खा कर भूख मिटाते हैं
वो होता हैं
खेला करते हैं हम उससे
फिर मोड़ कर उसे रख देते हैं किसी टोकरी में
यही तो चाहते हैं न हम
उससे जिसे हम चाहते हैं
किस्सों जैसे
ग़म के मज़े आ जाते हैं
चीखें हैं लोरी जैसी
हम सुन कर के सो जाते हैं
उसका बदन रोटी का टुकड़ा
खा कर भूख मिटाते हैं
वो होता हैं
खेला करते हैं हम उससे
फिर मोड़ कर उसे रख देते हैं किसी टोकरी में
यही तो चाहते हैं न हम
उससे जिसे हम चाहते हैं
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