शुक्रवार, 29 जून 2012

kinare

तुमसे प्यार करते करते
डर सा जाता हूँ
अलग होकर तुम्हारे साथ साथ
नहीं चल पाता
अनचीन्ही पगडंडियों में

फासलों के जन्मे हुए हैं
अगले सारे दिन
उन सभी दूरियों का विस्तार
नदी के दो सिरों सा

शांत
बस ताकता हुआ
जड़
अपने और तुम्हारे बीच
वक़्त के बहाव की कल्कलें सुनता

अपने डर को अपने गले में बांधे
उसके साथ जीता हुआ
अपने समय का इंतज़ार करता

मेरे ममेतर
दूसरे छोर पर तुम खड़े हो
और मैं तय नहीं कर पाता
एक नदी का विस्तार
जो निर्बाध बह रही है
हमारे बीच सदियों से  

1 टिप्पणी: