बुधवार, 27 जुलाई 2011

for joseph macwan

तुम्हारी मुट्ठी में कैद हैं सांसे मेरी
तुम्हारे पंजे जबड़ों की माफिक

मेरा वजूद दबोचे बैठे हैं

घुटन पुश्तों से घुल गयी है
पत्थर पे रिसते खून में

पूछते हो क्यों बम बन गया मैं

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