रविवार, 2 नवंबर 2014

-

तुम
बहुत दूर चले हो
कितना कुछ लाद रखा है कन्धों पे

थोड़ी देर ठहर जाओ
सुस्ताओ

कुछ छोड़ कर जाओ रास्तों में

कुछ देर निहारो दोपहरी
कुछ देर बिसारो कचहरी
साँस भरो सूखी काया में

तुम
बहुत दूर चले हो

कुछ गाओ
या सुन लो नयी सी आवाज़ें

सर पर थोड़ी छाँव धरो
पैरों में थोड़ा गाँव धरो

पी लो धूप  सुनहरी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें