ज़ुम्बिशों के तहखाने में
एक हरारत तेरी रक्खी थी
आज लगा यूँ
धूल झाड़ कर
छू लूँ तुझको
जैसे पहली बार छुआ था
इन मौसमों में
मुहब्बत छुपा कर रखते हैं
ज़बान दबा कर रखते हैं
दिल रखते हैं तहखानों में
सीने में सब्ज़ बहारों की राख रखते हैं
आहिस्ता आहिस्ता
बुझने के लिए
एक हरारत तेरी रक्खी थी
आज लगा यूँ
धूल झाड़ कर
छू लूँ तुझको
जैसे पहली बार छुआ था
इन मौसमों में
मुहब्बत छुपा कर रखते हैं
ज़बान दबा कर रखते हैं
दिल रखते हैं तहखानों में
सीने में सब्ज़ बहारों की राख रखते हैं
आहिस्ता आहिस्ता
बुझने के लिए
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