शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

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कुछ दिनों के बाद शायद
कुछ दिनों के पार शायद
इस धुंधलके के लिए
इतना भरोसा बस रहा

रात सूखी धूप से जल जल कर
सूखी रेत पर
आँखों में जो भर लिया था
उतना दरिया बस रहा

ये भी कट  जाएगी
खुद के लिए जो की मुक़र्रर
नींद से लड़ते लड़ते सुबह तक
तेरा चर्चा बस रहा



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