-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
रविवार, 12 जनवरी 2014
तुम फ़रिश्ते तो नहीं हो
मैं भी फरिश्तों सा कहाँ
फिर भी मौके बे मौके
बहार आ जाती है
हमारी महफिलों में
अब के आये तो ठहर जाना दो घडी के लिए
एक मुद्दत से बहार ठहरी है तुम्हारे इंतज़ार में
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