शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

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ठंढ को महसूस करना एक कला है
हर रोये से चूमना हवा की नमी को
कानों से झन्ना के चटक जाये
किसी कोहरे का सितार
सूरज को मानो एक tungsten filter से देखना
और फिर आहिस्ता आहिस्ता उसे बैठते देखना बगलवाली कुर्सी पर 
सुबह की चाय के वक़्त

और कभी स्टेट ट्रांसपोर्ट के बस के पीछे भागते हुए
महसूस करना
चेहरे पर जमता ठंडा पसीना
ठंढ में प्यार करना
गुनगुनाना
घर थोड़ी देर से आना
और रखना अरमान
एक अदद ओवरकोट का
ठंढ में रुई के अनगिनत गोलों के बीच
बूढा हो जाना
सफ़ेद

ठंढ का इंतज़ार करना एक कला है 

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