अबाध
बहता गया
कहीं तो नदी का अंत
पूछेगा मुझसे
किस किनारे
पर मिलेगा रे
समुन्दर
कितनी दूर आया मैं
तेरा पता लेकर
कितने गाँव कितने शहर
कितने रिश्ते नाते
....बस इसलिए के तेरे साथ बैठूं एक दिन
तू कौन है
मैं कौन हूँ
और क्या है ये अनगिनत वर्षों का संघर्ष
बस एक क्षणिक विलय के सुख का
बहता गया
कहीं तो नदी का अंत
पूछेगा मुझसे
किस किनारे
पर मिलेगा रे
समुन्दर
कितनी दूर आया मैं
तेरा पता लेकर
कितने गाँव कितने शहर
कितने रिश्ते नाते
....बस इसलिए के तेरे साथ बैठूं एक दिन
तू कौन है
मैं कौन हूँ
और क्या है ये अनगिनत वर्षों का संघर्ष
बस एक क्षणिक विलय के सुख का
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