शनिवार, 23 मार्च 2013

nani aur dadaji ke liye

हम कई लोगों की उँगलियाँ पकड़ के चलते हैं
उनकी गोद में चहकते हैं
उनपर हक जताते हैं
उनसे फ़र्माइशें  करते हैं
उनके खिलाफ बगावत करते हैं
झगड़ते हैं
उनको गलत करार देते हैं
उनसे दूर जाते हैं
उन्हें समझाते हैं
एक नयी दुनिया में घसीटते हैं
और फिर इंतज़ार करते हैं
उनके किश्तों में सूखने का
झड़ने का गलने का
और फिर लकड़ी के एक गट्ठर पे
हमारे हाथों जलाये जाने का

और क्या अहेद ए वफ़ा होते हैं
लोग मिलते हैं जुदा होते हैं 

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