नदी के पेट में
सोया पड़ा है
एक सूखा गाँव
पपड़ी की तरह
एक छोर पर चिपका सतह से
एक नर्तक की तरह
एक ठहराव को एक फ्रेम में कैद करता
एक पैर पर उड़ता
मेरा गाँव
मैं बरसों से नहीं गया हूँ वहां
बस नदी के कानों से झांकता हूँ
और फूँक कर देता हूँ आवाजें
जो वापस
एक बैरंग लिफाफे की तरह
मेरे पास आती हैं
अब कोई रहता नहीं हैं
गाँव में मेरे
सोया पड़ा है
एक सूखा गाँव
पपड़ी की तरह
एक छोर पर चिपका सतह से
एक नर्तक की तरह
एक ठहराव को एक फ्रेम में कैद करता
एक पैर पर उड़ता
मेरा गाँव
मैं बरसों से नहीं गया हूँ वहां
बस नदी के कानों से झांकता हूँ
और फूँक कर देता हूँ आवाजें
जो वापस
एक बैरंग लिफाफे की तरह
मेरे पास आती हैं
अब कोई रहता नहीं हैं
गाँव में मेरे
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