निहाँ है तेरे सागर में
मेरे सुकून के पल-छिन
एक पैमाने जितनी जिंदगानी में
पूछते हो क्या पाया मैंने
साकी हूँ किसकी महफ़िल का
किसके लबों पर कब चस्प हुआ
एक अर्से की ख़ुमारी का सुदोज़ियाँ
बचाया गवाया क्या मैंने
एक रात कटी हैं आखों में
एक नींद है अपने रस्ते पर
बादाख्वारी में कुछ तो सच निकला
वगरना बताया क्या मैंने
मेरे सुकून के पल-छिन
एक पैमाने जितनी जिंदगानी में
पूछते हो क्या पाया मैंने
साकी हूँ किसकी महफ़िल का
किसके लबों पर कब चस्प हुआ
एक अर्से की ख़ुमारी का सुदोज़ियाँ
बचाया गवाया क्या मैंने
एक रात कटी हैं आखों में
एक नींद है अपने रस्ते पर
बादाख्वारी में कुछ तो सच निकला
वगरना बताया क्या मैंने
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