सोमवार, 20 जून 2011

itivrit5

कुछ नहीं है लिखने को
बेआवाज़ अल्फाजों की पतंगें हैं
छत पे बैठा 
उडाता रहता हूँ हवाओं में 

मेरा नाता नहीं है इनसे अब
ये हवाओं के जने उनके सगे 
इनको किसी दूर देस जाना है 

इनका नाता नहीं है मुझसे अब
मेरे घर में नए अलफ़ाज़ लिए
नए मानी आ गए हैं किराये पे 
पतंगों की तरह दूर कहीं उड़ने को 

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