कुछ नहीं है लिखने को
बेआवाज़ अल्फाजों की पतंगें हैं
छत पे बैठा
उडाता रहता हूँ हवाओं में
मेरा नाता नहीं है इनसे अब
ये हवाओं के जने उनके सगे
इनको किसी दूर देस जाना है
इनका नाता नहीं है मुझसे अब
मेरे घर में नए अलफ़ाज़ लिए
नए मानी आ गए हैं किराये पे
पतंगों की तरह दूर कहीं उड़ने को
NICE POEM . . .
जवाब देंहटाएंJAI HIND JAI BHARAT