उम्र भर चले जिन रास्तों पे हम
हासिल क्या उन रास्तों का
कहानियों के सिवा
कभी सोचता हूँ
और क्या होता हासिल
दूसरे रास्तों पर
जिन्हें हम देखा करते थे छत पर खड़े होकर
तेज़ रफ़्तार से फिसलती थी ज़माने की गाड़ियाँ जिसपर
अपने अपने हिस्से की रवानियाँ है
न सुनी हो मैंने
पर उधर भी
हासिल
कहानियां हैं
किसकी कहानियों का किरदार था मैं
किसके प्लाट का खलनायक
अनजाने में किसकी चीखों का गला घोटा मैंने
एक दूसरे में गुत्थमगुत्था
ये किनकी कहानियों के जाल में बुना मैंने
अपनी जिंदगी का तार
और उधेड़ दी किसकी चादर
अपनी डोर खींचते हुए
राम
पतंग से लगता तो उड़ता
या बुना रहता किसी की चादर में...
सोचता तो भी क्या .....
क्या हासिल...किसकी कहानियां ...क्या रास्ता...
Lovely..:)
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