-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010
jhagde-1
इशारों में भी ख़ामोशी है
टीवी का remote पड़ा है सिरहाने में
चाय के प्याले कटघरे में खड़े है गवाहों की माफिक
आज की शाम की अदालत में
ये जिरह हाय नश्तर सी गुजरी है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें