-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
सोमवार, 20 सितंबर 2010
shatranji
काला सफ़ेद
जैसा दिन
बनता जाये शतरंजी
ये शह वो मात
पापड़ sabzi दाल भात
tire में जमे पानी जैसा
सड़ता जाये शतरंजी
भूरा है सब
कैसे खेले
कौन बिछाये शतरंजी
1 टिप्पणी:
Amrita Tanmay
14 अक्तूबर 2010 को 5:51 am बजे
anand jee apka blog bahut achchha laga . hardik shubhkamnayen .
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anand jee apka blog bahut achchha laga . hardik shubhkamnayen .
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