शुक्रवार, 30 जून 2017

Ba-har- haal

वो मिल गया 
वो खयाल था 
वो नहीं रहा 
ये मलाल था 

वो ख्वाबों का मेरा गुलमोहर 
उसे छोड़ घूमा कई शहर 
जब थक गया 
तब रुक गया 
उस छाँव में 
जो सराब था 

ये गुरेज़ का एक तिलस्म था 
जो उगता था मुझसे बाहर 
अपनी जड़ें 
गहरी डालता 
मेरे अंदर 
मैं अपने डरों की मिटटी हूँ 


मैं कैसा हूँ 
ये जवाब था 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें