ठंड में बौकती
पत्थरों पर अपने बूट पटकती
एक रात गुस्से में दारु पी कर
मेरे दरवाज़े पर बेहद शोर करती है
बारिश है
घर पर छत नहीं है
बस दीवारें हैं
जो एक दूसरे से टेक लगाये खड़ी हैं
एक बच्चा है
बिन माँ बिन बाप
एक अकेली बस्ती है
और एक डर है
जो दरवाज़ा भी है
और कैद भी
और बूंदों के साथ गिरती आहटें हैं
पत्थरों पर अपने बूट पटकती
एक रात गुस्से में दारु पी कर
मेरे दरवाज़े पर बेहद शोर करती है
बारिश है
घर पर छत नहीं है
बस दीवारें हैं
जो एक दूसरे से टेक लगाये खड़ी हैं
एक बच्चा है
बिन माँ बिन बाप
एक अकेली बस्ती है
और एक डर है
जो दरवाज़ा भी है
और कैद भी
और बूंदों के साथ गिरती आहटें हैं
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जवाब देंहटाएंबारिश है
घर पर छत नहीं है
बस दीवारें हैं
जो एक दूसरे से टेक लगाये खड़ी हैं
qatl hai....