सोमवार, 2 मई 2011

skeptic

चिरागों से जल जाता है
आज कल घोसला मेरा

कलमा पढ़ कर ही मुस्कुराता हूँ

खुशियों का क्या ठिकाना
किस डाल जा फिरें

ज्यादा खुश होता हूँ तो डर जाता हूँ

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