गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

bastiyan jalti hain

बस्तियां जलती हैं
उनका जड़ पकड़ना
उनका ख़त्म होना है

उन्हें तिरते रहने दो
मैन्ग्रोव के जंगलों की तरह
उन्हें छिपने दो
कचरे के ढेर के बीच
कुकुरमुत्ते की तरह

उनका अस्थ्याई होना
उनके स्थायी होने की पहली शर्त है

उनमें रहते लोगों की ज़िन्दगियों की तरह
उनके सपनों की तरह

उन प्लास्टिक के बुलबुलों की तरह
जो फटने के कगार पर
खड़ी रहती हैं बरसों 

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