रविवार, 28 अगस्त 2016

ये फरेब है
के रास्ता दिखा नहीं
गलियों में पहचान वाले थे
मैं गया नहीं

काफी बुझी हुई शाम का वज़न
गीली रुई की तरह उठाते हुए
पूरी शाम एक चाय की प्याली पर फोकस कर के निकाल दी हमने
क्या फायदा हुआ
खानापूरी कर के
ये कैसा मिलना
जो खाली कर के जाता है
एक भरे हुए दिन को

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