बहुत थक से गए हैं
हम तेरे बज़्म में
खर्च कुछ इस तरह हुए
हम तेरे बज़्म में
आये तो मुन्तज़िर थे
एक दीद के तेरे
अब दीद - ए - बरहम हुए
हम तेरे बज़्म में
कुछ इस तरह ज़लील हुए
के उठकर न जा सके
बैठे रहे खत्म हुए
हम तेरे बज़्म में
हम तेरे बज़्म में
खर्च कुछ इस तरह हुए
हम तेरे बज़्म में
आये तो मुन्तज़िर थे
एक दीद के तेरे
अब दीद - ए - बरहम हुए
हम तेरे बज़्म में
कुछ इस तरह ज़लील हुए
के उठकर न जा सके
बैठे रहे खत्म हुए
हम तेरे बज़्म में
लगता है ज्यों मेरे अनुभव बोल रहे हैं.
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