-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
गुरुवार, 7 अगस्त 2014
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मैं ढला करता हूँ हर शाम लम्हा दर लम्हा
तुम्हारी शाम को कोई चिरागां और करे
मैं फिर मिलूंगा तुम्हें सुबह के मुहाने पर
ग़ैब सपनों की हिफाज़त कोई और करे
मैं सर्दियों का लिहाफ हूँ बदरंग ओ ख़राब
हसीं मौसमों की रंगत कोई और करे
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