कई रातों के बेसिरपैर सपने
दस्तावेज़ों की तरह गुथे हुए
रखे हैं ऐसे
जैसे मालगाड़ी का एक खाली डब्बा
एक अध् गुमी रेल की पटरी पर
खड़ा रहता है
ऐसा इंतज़ार किसका किया है
लोगों का, हालातों का, चीज़ों का, मौसमों का
कौन छांटेगा ये बैरंग सपने
रवाना करेगा इन्हें
नींद की डाक पर
दस्तावेज़ों की तरह गुथे हुए
रखे हैं ऐसे
जैसे मालगाड़ी का एक खाली डब्बा
एक अध् गुमी रेल की पटरी पर
खड़ा रहता है
ऐसा इंतज़ार किसका किया है
लोगों का, हालातों का, चीज़ों का, मौसमों का
कौन छांटेगा ये बैरंग सपने
रवाना करेगा इन्हें
नींद की डाक पर
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