सड़कें थीं अंतहीन
नंगे पैर थे
और सर पर
एक पूरा घर
और चिलचिलाती धूप
क्यों लोग थालियां बजाते रह गए
जब रेलगाड़ी कुचल गयी उसका चेहरा
क्यों उसके खेतों का गेहूं
सड़ गया सरकारी गोदामों में
पर नहीं आया उसके काम
कभी जिन इमारतों के लिए
उसने ईटें ढोयीं
उनके दरवाज़े नहीं खुले
उसके लिए
किसका था ये मुल्क
जो उसका न हुआ
किसके थे ये लोग
जो उसके न हुए
नंगे पैर थे
और सर पर
एक पूरा घर
और चिलचिलाती धूप
क्यों लोग थालियां बजाते रह गए
जब रेलगाड़ी कुचल गयी उसका चेहरा
क्यों उसके खेतों का गेहूं
सड़ गया सरकारी गोदामों में
पर नहीं आया उसके काम
कभी जिन इमारतों के लिए
उसने ईटें ढोयीं
उनके दरवाज़े नहीं खुले
उसके लिए
किसका था ये मुल्क
जो उसका न हुआ
किसके थे ये लोग
जो उसके न हुए
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें