देर रात तक
मेरा दिमाग
एक रेलवे प्लेटफार्म की तरह बिछा होता है
कुछ ख्याल चलते रहते हैं पैसिंजरों की तरह टहलते रहते हैं
पूरी रात
कुछ यादें ट्रेनों की तरह आती हैं
नींद नहीं आती
ये उम्र
इतनी लम्बी थकान
के कोई सो भी जाये बरसों
तो ख़त्म न हो
सोचता हूँ के कर लू वास्ता
फूल पत्तियों से
लोगों से बाज़ आऊं
क्या वक़्त है
जो टंगा रहता है
दम घोंटता है
गुज़रता भी नहीं
बदलता भी नहीं
मेरा दिमाग
एक रेलवे प्लेटफार्म की तरह बिछा होता है
कुछ ख्याल चलते रहते हैं पैसिंजरों की तरह टहलते रहते हैं
पूरी रात
कुछ यादें ट्रेनों की तरह आती हैं
नींद नहीं आती
ये उम्र
इतनी लम्बी थकान
के कोई सो भी जाये बरसों
तो ख़त्म न हो
सोचता हूँ के कर लू वास्ता
फूल पत्तियों से
लोगों से बाज़ आऊं
क्या वक़्त है
जो टंगा रहता है
दम घोंटता है
गुज़रता भी नहीं
बदलता भी नहीं
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