हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
कतरा ले कर जाइयो
हम उसमें रक्खे बैठे हैं
जितना है अपना
जाता है
तो बह जायेगा
दिल दरिया
फिर खर्च ज़िंदगी कर के हम
किसी नदी किनारे बैठेंगे
जैसे भी होगा
गायेंगे
जो बचा है
जीते जाएंगे
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