हर नयी रात का
कायदा है
कुछ भूल जाना
फिर मिलना अगली सुबह से
याददाश्त के उसी चौखट पर
जहाँ न जाने की
हज़ार मिन्नतें की थी
ख़राब होता है वक़्त के साथ
आदमी पुर्ज़ा है
जंग खाता है
याददाश्त की चट्टानों से रोज़ घिसकर
टूट जाता है
कायदा है
कुछ भूल जाना
फिर मिलना अगली सुबह से
याददाश्त के उसी चौखट पर
जहाँ न जाने की
हज़ार मिन्नतें की थी
ख़राब होता है वक़्त के साथ
आदमी पुर्ज़ा है
जंग खाता है
याददाश्त की चट्टानों से रोज़ घिसकर
टूट जाता है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें