कितना जिया ?
ये सवाल पूछा है खुद से कई दफा
जवाब
कैसे जिया की मार्फ़त आता है
अब कभी पूछता हूँ
क्या है पहचान मेरी
मेरी मजबूरियों के अलावा
एक दफा
सबको बता रखा था सपनों के बारे में
कुछ हंस कर कुछ डर कर
वो गुम हो गया शायद
सपने सुनाने वाला
इस जंगल सी फैली दुनिया में
इस उम्मीद से लिखता हूँ ख़त
कभी कभी उसको
एक बड़े पेड़ के तले
हम दोनों किसी सुबह
ज़िक्र छेड़ेंगे उन्ही सपनों का
ये सवाल पूछा है खुद से कई दफा
जवाब
कैसे जिया की मार्फ़त आता है
अब कभी पूछता हूँ
क्या है पहचान मेरी
मेरी मजबूरियों के अलावा
एक दफा
सबको बता रखा था सपनों के बारे में
कुछ हंस कर कुछ डर कर
वो गुम हो गया शायद
सपने सुनाने वाला
इस जंगल सी फैली दुनिया में
इस उम्मीद से लिखता हूँ ख़त
कभी कभी उसको
एक बड़े पेड़ के तले
हम दोनों किसी सुबह
ज़िक्र छेड़ेंगे उन्ही सपनों का
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