वो मिल गया
वो खयाल था
वो नहीं रहा
ये मलाल था
वो ख्वाबों का मेरा गुलमोहर
उसे छोड़ घूमा कई शहर
जब थक गया
तब रुक गया
उस छाँव में
जो सराब था
ये गुरेज़ का एक तिलस्म था
जो उगता था मुझसे बाहर
अपनी जड़ें
गहरी डालता
मेरे अंदर
मैं अपने डरों की मिटटी हूँ
मैं कैसा हूँ
ये जवाब था