खामोश ज़मीनों में
नमी कुरेद दे कोई
बंजर लोग अपने दिल का धुआं
फूंक चुके हैं
तकते एक दूसरे को
रात के टूटे तारे
कई उदास घरों का आसमान
फूंक चुके हैं
किधर का रुख देखें
जब बियाबान हो
अपना चेहरा
किससे दरयाफ्त करें
सपनों के मलबों के तले
कोई ज़मीन नहीं होता है
वतन होना
जब वज़ूद हो अपना
कोई कफ़न होना
नमी कुरेद दे कोई
बंजर लोग अपने दिल का धुआं
फूंक चुके हैं
तकते एक दूसरे को
रात के टूटे तारे
कई उदास घरों का आसमान
फूंक चुके हैं
किधर का रुख देखें
जब बियाबान हो
अपना चेहरा
किससे दरयाफ्त करें
सपनों के मलबों के तले
कोई ज़मीन नहीं होता है
वतन होना
जब वज़ूद हो अपना
कोई कफ़न होना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें