-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
सोमवार, 1 मई 2017
aawaz
बागों की निगरानी में
फूल छोड़े हैं
फ़लक तक तैर के जाएँ
ये ख्वाब थोड़े हैं
एक बोतल में डाल दो चिट्ठी
ये दरिया जाने किससे जोड़े है
be-watan
खामोश ज़मीनों में
नमी कुरेद दे कोई
बंजर लोग अपने दिल का धुआं
फूंक चुके हैं
तकते एक दूसरे को
रात के टूटे तारे
कई उदास घरों का आसमान
फूंक चुके हैं
किधर का रुख देखें
जब बियाबान हो
अपना चेहरा
किससे दरयाफ्त करें
सपनों के मलबों के तले
कोई ज़मीन नहीं होता है
वतन होना
जब वज़ूद हो अपना
कोई कफ़न होना
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