-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
मंगलवार, 8 मई 2018
हम गुलशन में लाशों की फसल देख रहे हैं
जो उग रही है
हमारी आखों में
मोतियाबिंद की तरह
गुज़र जायेगा ये वक़्त
नफरतों की दो सुईओं पर नाचता
और हम खड़े होंगे
ये सोचते हुए
के हुआ क्या
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