टूट कर गिर गयी आखें चेहरे से
बातें तश्तरियों की मानिंद चटक गयी किनारों से
 अब गए दूर जो खुद से
न जुड़ सकेंगे कभी
ये दरारों की सी हरकत नहीं
जो उगती हैं जैसे आता है अकेलापन
एक हमसाये हमसफ़र का मुखोटा लेकर
ये fracture है
एक झटके का ज़ख्म
खुद पे किया गया आखिरी वार
न मरहम न पलास्तार
न सुकुंवर से सुखन
दो हिस्से हैं अनजान से मेरे खुद के
उनमे मैं हूँ दो अलग वजूदों में जीता सा हुआ
सीने में लिए एक fracture
 
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
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