हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
जुड़ता हूँ
तो होता हूँ पूरा
तू छिटक देती है
तो बिखर जाता हूँ कांच की किरचों की तरह
फिर हर क़तरा चुनता हूँ
उठाता हूँ
उसको जोड़ कर पूरा बनाता हूँ
ये क्या इश्क़ है
जो होता है
हर बार तुझसे
पर खुद से हो नहीं पाता