कितना दुखता है
ये वक़्त
कितने अकेले हैं सभी
सब डरे से हैं
कोई उनको समझता ही नहीं
वो समझ जाएं किसी को
इतना वक़्त नहीं
किसी के मरने
की शर्त पर
हर रोज़
मैं खरीदता हूँ ज़िंदगी
और खोजता फिरता हूँ
उसमें भरने के लिए रंग
क्या कोई और वक़्त
कभी था
मुक्कमल सा
जिसकी शक्ल हमने
फिल्मों भी भी देखी थी
जहाँ लोग अच्छे और बुरे होते थे
यहाँ तो सारे हादसों के मारे
बुझे थके हारे
लड़ते काटते कटते
लाचार लोग हैं
अपनी ही कहानी में
गिरफ्तार लोग हैं